Wednesday, September 26, 2012

सत्य की अवधारणा


सत्य एक ऐसी अवधारणा है, जो मनुष्य की सोच व समझ पर आधारित है | मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है | उसके पास सोच रूपी अनंत जमीन है जो उपजाऊ है | उस जमीन के अंदर अनगिनत चीजें उग आती हैं| 

“ सत्य मूर्त भी है और अमूर्त भी |” मनुष्य की सोच व विशवास यह तय करता है कि उसके लिए सत्य क्या है | वास्तव में सत्य को निश्चित परिभाषा में जकड पाना असंभव है | धर्म के आधार पर सत्य को अलग दृष्टि से देखा व समझा जाता है, वहीँ अगर विज्ञान की दृष्टि से देखें तो सत्य का अलग रूप दिखाई देता है |
मेरा यह मानना है कि सत्य को विज्ञान की दृष्टी से देखना ही उचित है | इसीलिए कि विज्ञान को छोडकर बाकी सब कल्पना भर है |कल्पना जब साकार हो जाती है तब सही अर्थ में ‘सत्य’ कहलाती है | कोई बात जब तक कल्पना की उड़ान भरती है तब तक वह महज कल्पना ही होती है | परंतु यदि वह मूर्त रूप धारण करें तो उसे सत्य के रूप में स्वीकारना होगा |
‘ जिव्हा के द्वारा जिसके स्वाद का पता चलता है, आँखों से जो दिखाई देता है, जो कानों से सुनाई देता है, जिसे नाक से सूंघा जा सकता है , जो स्पर्श से महसूस होता है वही सत्य है |”
जो भिन्न भाषाओँ द्वारा केवल व्यक्त होता है उसकी सत्यता पर आशंका उत्पन्न होती है जब तक कि वह प्रकट न् हो | सत्य को सुंदर मान जाता है | अगर वह सुंदर है तो हम जरुर किसी न् किसी रूप में उसके होने का अनुभव करते हैं | यही कारण है कि हम उसे सुंदर कह पाते हैं | कुछ लोग बिना अनुभव के कल्पना को ही सत्य मान बैठते हैं | परंतु कल्पना एवं सपने में अधिक अंतर नहीं है | मनुष्य अपने जीवन में कई सपने देखता है | परंतु साकार कुछ लोग ही कर पाते हैं जो निरंतर अपने कर्म पर भरोसा करते हैं | बिना कर्म किए जो केवल अपने भाग्य के भरोसे रहते हैं, या केवल सपने देखते हैं, उनके सभी सपने केवल सपने बनकर रह जाते हैं | इसीलिए सपनों को अपने कर्म के आधार पर साकार करना ही सत्य कहलाता है | जिस प्रकार बिना भाषा के सत्य को स्पष्ट करना असंभव है , ठीक उसी तरह ठोस प्रमाण के बिना तथाकथित सत्य को मान लेना असंभव है | मेरे मन में सदैव एक प्रश्न उठता है कि हम क्यों अपनी ही नजर में किसी चीज को पूर्ण सत्य मानने की गलती करते हैं, उसे औरों की भी नजर से क्यों नहीं देखा जाता ? शायद इसीलिए कि उसके पीछे हमारा अपना कोई स्वार्थ छिपा हो | हम लगातार असत्य को सत्य के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं, परंतु सत्य किसी न् किसी रूप में प्रकट हो ही जाता है | क्योंकि असत्य पर हमेशा सत्य की विजय होती है | 
                                                        

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