Saturday, May 19, 2012

समय का कोई समय नहीं

सूर्य के उदय तथा अस्त के बीच का का अंतराल समय है | समय अजरामर है | वह हर दिन नया जन्म ग्रहण करता है | उदय व अस्त के बीच जो कुछ भी घटित होता है उसे मनुष्य अपनी सुविधा के अनुसार समय के विभिन्न टुकड़ों में विभाजित करता है | अनंत घटनाओं का चक्र लगातार चलता रहता है | संसार का यह वह चक्र है जिसका स्वभाव परिवर्तन है | वह निरंतर नया रूप धारण करता है | पशु हो या मनुष्य, लगातार इस चक्र में अपने आप को ढालने का प्रयास करते रहता है |
समय प्राकतिक है | वह मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं है | इसीलिए मनुष्य न् उसे रोक सकता है और न् ही उसे परिवर्तित कर सकता है | संसार के हर जीव के लिए एक मर्यादित समय होता है | उसी समय में उसे अपने किसी भी कार्य को संपन्न करने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है | समय कभी भी न् अच्छा होता है और न् ही बुरा बल्कि हम इन्सान उसे अच्छा या बुरा करार देते हैं | कोई इन्सान अगर अच्छा कर्म करता है तो उसके लिए अच्छा समय माना जाता है और कोई बुरा कर्म करता है तो उसका बुरा समय माना जाता है | सच तो यह है कि इसमें दोष समय का नहीं बल्कि निर्धारित समय का उपयोग करने वालों का है | हमें जरुरी है कि हम निश्चित समय में निश्चित कार्य करें | विंस्टन चर्चिल इस सन्दर्भ में कहते हैं –“ It is mistake to look too far ahead. Only one link of the chain of destiny can be handled at a time.”
सूर्य के उदय व अस्त के बीच जो समय है उसमें भी हम अपनी सुविधा के लिए कह सकते हैं कि भिन्न-भिन्न समय हैं | अगर कोई प्राकृतिक विपदा आ जाती है तो उसमें किसी भी जीव का कोई दोष नहीं बल्कि प्रकृति का है | आपदा के घटित होने पर या घटित होने के अहसास पर हम कहते हैं कि आजकल समय ठीक नहीं चल रहा है | परन्तु प्रकृति का स्वभाव परिवर्तन है | वह कभी भी और किसी भी रूप में परिवर्तित हो सकती है | अगर हम समय को अपने जीवन के साथ मर्यादित करके देखते हैं तो हमें ध्यान रखना पड़ेगा कि प्रकृति में मनुष्य की निर्मिति अदभुत, चमत्कारी एवं अनमोल है | इसीलिए हमें समय के अनुसार चलना होगा | शेक्सपियर ने सही कहा है –“ पृथ्वी एक रगमंच है और हम सब उस मंच के कलाकार हैं |” अपने प्राप्त समय में हम कैसा अभिनय करते हैं यह हम पर ही निर्भर है | वास्तव में हमारा सम्पूर्ण जीवन एक सुंदर अभिनय है |
मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि हमें समय के साथ चलकर सदैव खुश व सतर्क रहना चाहिए क्योंकि किसी भी समय का कोई निचित समय नहीं होता है |     

Wednesday, April 4, 2012

सुबह सवेरे (बाल कविता)


सुबह सवेरे, प्यारे-प्यारे,
फूल खिले हैं आँगन में,
मोर नाचे, कोयल गाए,
खेल रहे हैं बागन में |
उठो-उठो अब आँखे खोलो,
बाहर थोड़ी दौड लगाओ,
सुनहरी धूप, ठंडी पवन में,
झूमों गाओ, खुशी मनाओ |
मैना बोले चू-चुड-चूsss
मुर्गा बोले कु-कुड-कूsss
आओ दोस्तों, आ भी जाओ,
साथ मिलकर नाचो, गाओ |     

Monday, March 19, 2012

पानी ही जीवन है ( विश्व पानी दिवस के लिए समर्पित )


खाना हो या उपवास ,प्यासों की प्यास
इसी में है,
जीवन का उल्हास |
पानी शक्ति है
वह बहता है, बहाता है,
नहलाता भी है |   
पानी जीवन देता है ,जीवन लेता है
पानी सबकी चाहत है ,राहत है,
क़यामत भी है |
पानी अमृत है अच्छाई का
जहर है बुराई का ,
यह दवा है, दुवा  भी है|
पानी में विश्व है , विश्व में पानी है
सारे जहाँ में बस, पानी ही पानी है |
पानी हमारा आज है ,हमारा कल भी है,
मंजिल हमारी जो भी है  
पानी हमारा हमसफर भी है |
सुबह का पानी, श्याम का पानी
रात हो या उजाला,
प्रकृति की गोद में समाया है पानी |
देवी हो या देविका
प्रेमी हो या प्रेमिका
सबके दिलों पर राज है पानी का |
जीने के लिए पानी ,मरने के लिए पानी
इसका न् कोई सानी , ईश्वर की वाणी
मरणोपरांत भी पिलाया जाता है पानी | 
इसीलिए कहता हूँ,
पानी में जीवन है,
जीवन ही पानी है |  

Saturday, October 9, 2010

ज्ञान की ज्योत




प्रगति पथ पर बढ़ते जाओ
ज्ञान की ज्योत जलाते जाओ |
विश्व ये घर है कहीं भी रहो
अपने वतन को भूल न जाओ
सत्य वचन का साथ निभाओ
ज्ञान की ज्योत---
हम हैं सभी के सब भाई- भाई
जीवन का लक्ष हो सबकी भलाई
सारे जहाँ संग खुशियाँ मनाओ
ज्ञान की ज्योत जलाते जाओ |

Sunday, October 3, 2010

सलमा ( कहानी )

मुर्गे ने बांग दी और सलमा की नींद टूट गई | जल्दी से उठकर उसने दरवाजा खोला और बाहर आ गई | थोड़ासा अँधेरा ही था | बैलों को चराने के लिए जाने वाला पकाभाऊ दिखाई दिया | कुछ औरतें आंगन में झाडु लगा रही थीं | पास ही कुएँ पर कुछ औरतें पानी भर रही थीं | सलमा अपने पर ही गुस्सा हो रही थी कि वह आज जल्दी क्यों नहीं उठी | वह जल्दी से अंदर गई | गागर और रस्सी लेकर कुएँ पर पहुँच गई | पकाभाऊ की पत्नी भी पानी भर रही थी | सलमा को देखकर बोली – “  क्यूँ सलमा, आज बड़ी देर कर दी ! गागर को रस्सी से बांधते हुए सलमा ने कहा – “ क्या करूँ शांति, रत में जल्दी नींद ही नहीं आई ; सो देर हो गई |” उसने जल्दी से गागर नीचे छोड़ दी
धामनगांव नगरों से बहुत दूर बसा हुआ था | गांव में न बिजली की सुविधा थी न अस्पताल की और न पक्की सड़क की | चालिस-पचास घरोंवाला यह गांव हर साल गर्मी में काफी समस्याओं से घिर जाता था | किसानों ने अपनी खेती में कुएँ खोद रखे थे, लेकिन बारीश के दिन खत्म होते ही वे सभी सूखे पड  जाते पीने के लिए पानी भी नही मिलता | महिलाओं को दूर दूर तक नागे पांव पानी की खोज में जाना पड़ता | गांव के पास एक ही ऐसा कुआँ था जिसमें सुबह के समय थोड़ा-सा पानी आ जाता और उस कुएँ पर सारी महिलाएँ जल्दी से उठकर अपनी पारी लगाकर बैठ जाती थीं | सलमा के तीन बच्चे थे | बड़ा बेटा हमीद उससे छोटा रसूल और सबसे छोटी बच्ची नूरजहाँ थी जिसे सभी लोग प्यार से नूरपुकारते थे | नूर लगभग तीन साल की थी और बड़ा बेटा हमीद नौव का | सलमा का पति रहमान शेख एकदम कामचोर, निकम्मा और बदमाश आदमी था | गांव की थोड़ी दुरी पर एक खँडहर था वहाँ पर पाशा मिया दारू बनाया करता था और रहमान हररोज दारू पीकर उसी खँडहर में पड़ा रहता था | कभी आधी रत में घर आता तो कभी पूरी रत उधर ही रहता | यहाँ सलमा उसकी राह में पूरी रात जगती रहती | जब तक रहमान नहीं आता वह खाना नहीं खा सकती थी | जिस दिन रहमान को पता चल जाता कि सलमा ने उसके आने से पहले खाना खाया है , उस दिन वह सलमा को बहुत पीटता था | इसी डर से सलमा किसी भी दिन न समय पर खाना खाती न समय पर सो पाती | वह हमेशा बेचैन और भयभीत रहती थी | तीस साल कि उम्र में ही बूढी औरत कि तरह उसकी हालत हो चुकी थी | पूरे गांव में दो ही ऐसे व्यक्ति थे जो उसका दुख दर्द समझ सकते थे | वे थे पकाभाऊ और शांति | जब भी सलमा को दुख होता, वह शांति के पास जाकर घंटो रोटी रहती | शांति बार-बार अपने पल्लू से उसकी आंखे पोंछती रहती | इससे शांति कि भी आंखे भर आती | रहमान जब भी सलमा को पीटते लगता तो बड़ा बेटा हमीद रोते हुए पकाभाऊ को बुला लाता और पकाभाऊ भी दौडकर आता और रहमान को पकड़कर खींचते हुए दूर ले जाता | जब से रहमान के साथ सलमा कि शादी हुई तब से सलमा का यही हाल है |
थोड़ी देर बाद सलमा ने भी गागर भर ली और घर चली गई | उसे कम पर जाना था | पहले ही उसे बहुत देर हुई थी | रहमान तो रात को आया ही नहीं था | उसने जल्दी से झाडु लगा दिया | तब तक सभी बच्चे भी जग चुके थे | नूर तो उठते ही रोने लगी आम्माSSS रोटी --- सलमा हमीद पर ही चिल्लाई –“ हमीद ! खड़े-खड़े मेरा थोबडा क्या देख रहा है, देखता नहीं नूर चिल्ला रही है | जा उसको पानी पीला |” हमीद चला गया | सलाम न जाने क्या सोचकर घर के पिछवाड़े आ गई | सोचने लगी – “ क्या करूँ ? घर में न आटा है न रोटी का एक टुकड़ा | शांति पहले ही दो बार आटा उधर लिया हुआ है | वह अभी तक नहीं लौटाया | किस मुँह से उसके पास जाऊँ? या अल्लाह ! अब मई क्या करूँ ? चलो उससे ही भीख माँगनी पड़ेगी |” जल्दी सलाम घर आ गई | थाली ली | खुद को कोसती हुई मजबूरन शांति के घर पहुँच गई | शांति चूल्हा जला ही रही थी कि सलमा पर उसकी नजर पद गई और वह बोली –“ अरी सलमा ! क्या हुआ ? और हाथ में क्या छुपा रही है ? शर्म के मारे सलमा कि गर्दन झुक गई | सचाई बताने के सिवा उसके पास और कोई चारा न था | उसने कहा-शांति बहन ! क्या बताऊँ ? नूरनूर रो रही है, घर में थोड़ा भी आटा बचा नहीं जो रोटी बनाऊं | हमीद के अब्बा भी अभी तक नहीं आए | बस आज के दिन थोडा-सा अटा दे दे | देख, मुझे पता है, तेरा पहले ही अटा देना बाकी है | पर आज मुझे दादाराव के खेत में काम मिल गया है | आज रात जैसे भी हो, मैं तेरा सभी अटा लौटा दूंगी | “ शांति कुछ नहीं बोली | चुपचाप उसने थोडा सा अटा उसे दे दिया | सलमा भी बगैर कुछ बोले अटा लेकर घर चली आई | जल्दी-से उसने छोटी-छोटी तीन रोटियाँ बनाई | तीन थालियों में लाल मिर्च एक-एक चम्मच डाला | थोडा सा नमक मिलाया | एक-एक कटोरी पानी डाला | ऊँगली से उसे थोडा सा हिलाया और उसमे रोटी चुरने लगी | तीनों बच्चों के सामने थालियाँ रखकर उन्हें खाना खिलाया | जैसे बच्चों का खाना हो गया, वह तुरंत घर के पिछवाड़े से बड़ी-सी टोकरी ले आई | उसमें छोटी-सी रस्सी और एक कपडा रख दिया | रसूल की थाली में रोटी के दो टुकड़े बचे हुए थे, वे उसने खा लिए | थाली धो ली | एक लोटा पानी पी लिया | फिर पानी से लोटा भरकर टोकरी में रख दिया | “ हमीद नूर का खयालरखना | बहार कहीं मत जाना | दोनों घर में ही खेलना | ” कहकर सलमा काम पर निकल पड़ी |
 सुबह के दस बज चुके थे | सलमा गांव से बहुत दूर आ चुकी थी | बैलगाड़ी का कच्चा रास्ता खत्म हो चुका था | थोड़ी दूर आगे चलकर वह बाईं तरफ मुड गई | एक छोटी-सी पगडण्डी, जो अरहर की खेती से सीधी दादाराव की खेती की तरफ जाती थी | सिर की टोकरी को एक हाथ और साडी को एक हाथ से सँभालते हुए सलमा नंगे पांव जल्दी-जल्दी चल रही थी | सभी मजदुर पहले ही पहुँच चुके थे | उन्होंने काम शुरू ही किया था कि सलमा पहुँच गई | पहुँचते ही वह काम में जुट गई काम क्या था, एक जगह कूड़े का बहुत बड़ा ढेर था | हर दिन का जमा हुआ गोबर उठाकर सारी खेती में फैलाना था | सभी लोग बड़ी-बड़ी टोकरियों में गोबर भरने लगे और टोकरी सर पर लेकर दूर-दूर तक खेती में फैलाने लगे |
दोपहर हो चुकी थी | सभी लोगों ने काम बंद किया | एक किनारे पर नीम का पेड़ था | उसकी गहरी डंडी छाया थी | सभी लोग दोपहर का भोजन करने वहाँ इकठ्ठा हो गए | सलमा भी आ गई | उसने अपनी टोकरी नीम के तने से सटाकर रख दी और घर निकल पड़ी | सभी ने पूछा- क्यूँ री सलमा ! कहाँ जा रही हो ? हमारे साथ खाना नहीं खाओगी ? सलमा बोली- नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं | घर में बच्चे अकेले हैं | मैंने उन्हें कहा था कि मैं दोपहर का खाना खाने घर आऊँगी | आप लोग खा लो | तब तक मैं भी आ जाऊँगी |” सलमा उन्हें क्या जवाब देती ? सर पर पल्लू रखकर वह जल्दी-जल्दी चलने लगी |
 धूप बड़ी तेज थी | पैर जल रहे थे | पर सलमा को उसकी सुध नहीं थी | उसे तो अपने बच्चों कि फ़िक्र थी | उन्हें जाकर क्या खिलाऊँ ? रास्ते में उसे एक खलिहान दिखाई दिया | जाने क्यों अचानक उसके पैर उस तरफ मुड गए | उसने देखा कि खलिहान में जगह-जगह चने पड़े हुए हैं | उसने खलिहान की सारी मिट्टी इकट्ठा की | उसे अपने पल्लू में बांध लिया और घर पहुँच गई |
माँ को देखते ही रसूल रोते हुए माँ से शिकायत करने लगा – “आम्मी ! मुमुजेभै--भैया नेमैं खेल लहा ता तोबहुत मालाओल नूली को बी धकेल दिया | सलमा ने पल्लू में बाँधी मिट्टी एक टोकरी में दाल दी | रसूल को पास लिया और कहा –“ न् बेटा रोते नहीं | मेरा सबसे अच्छा दोस्त तू ही है | अपना हमीद भैया बहुत बदमाश है | रुक उसको खाना ही नहीं देती | रहने दे उसको भूखा | जब तेरे आब्बू आएँगे, तो मैं कहूँगी कि उसको बहुत पीटो |” रसूल चुप हो गया | उसके चेहरे पर हँसी छा गई | “ ठीक है, अब थोडा यहाँ बैठ मैं खाना बनाती हूँ हं ! फिर तू, नूर, आब्बू और मैं, हम सब मिलकर खाना खाएँगे | और हमीद को भूखा ही रखेंगे |” रसूल हँसने लगा और बोला-हाँ ! आम्मी ! मैं पुला खाना खाऊँगा | भैया को नई दूँगा |” एक जगह नूरजहां काफी देर तक रोते-रोते सो गई थी |
मिट्टी की टोकरी उठाकर सलमा घर के पिछवाड़े गई | हमीद को आवाज दी- हामीssद एक घड़ा पानी और थाली ला जल्दी |” हमीद थाली और पानी लेकर आ गया | सलमा ने टोकरी में पानी डाला | अंदर हाथ डालकर उसे जोर-जोर से हिलाने लगी और धीरे से टोकरी का पानी नीचे उंडेल दिया | टोकरी की तह में पूरे चने इकठ्ठा हो गए थे | सभी थाली में निकाल लिए | उसमे थोड़ी हल्दी और नमक डालकर चूल्हे पे चढा दिया | तब तक नूरजहां भी उठ गई | माँ को देखते ही रोने लगी | सलमा तुरंत उसके पास गई | “ आले- आले मेली बेगम छाई ! कब छोई थी ? हाँ माँ ! नूर ! कब छोई माँ !और उसे अपनी गोद में उठा लिया | पल्लू पानी में भिगोकर उसका मुँह साफ़ किया | इधर चने भी तब तक उबल चुके थे | नीचे उतार लिए | सभी के सामने परोस दिया |सलमा ने अपने लिए भी थोड़े ले लिए  और नूरजहाँ को खिलाते-खिलाते खुद भी थोडा खा लिया |  बड़ी देर होरही थी | काम पर जाना था इसलिए जल्दी से पानी पीकर निकल पड़ी |     आते-जाते हमीद से बोली –“ हमीद ! तुम्हारे आब्बा के लिए भी थोडा रख लेना | जब आएँगे खा लेंगे | और देख, बच्चों को मारना मत | ” इतने में नूरजहाँ ने आकार पैर पकड़ लिए और कहने लगी – “आम्मी, मुजे बी आना है तुमारे सात |” “नहीं बेटी ऐसा नहीं करते | देखो बाहर कितनी धूप है | और तुम्हे पता है , तुम्हारे आब्बा मिठाई लाने वाले हैं | तू मेरे साथ आएगी तो हमीद और रसूल भैया सारी मिठाई खा लेंगे |” सलमा ने कहा | नूरजहाँ ने चुपचाप अपने हाथ हटा लिए और अपने दोनों भाइयों की तरफ देखने लगी | सलमा चल पड़ी |
घर के थोड़ी दूरी पर ही पानी भरने का कुआँ था | हमीद, रसूल और नूरजहाँ को लेकर कुएँ पर चला गया | कुएँ के पास कीचड़ और गंदा पानी जमा हो गया था | उसमें कई कीड़े रेंग रहे थे | ऊपर मक्खियाँ भिन्ना रही थीं | उस गंदे पानी में एक कुत्ता आँख बंद करके पड़ा हुआ था | हमीद ने कुत्ते को देखा और पत्थर उठाकर उसे मार दिया | कुत्ता हडबडाकर उठ उठ गया और कोंय-कोयं करते हुए भाग गया तो सीधे हमीद के घर में ही | अमीद दरवाजा खुला छोड़कर ही बाहर गया था | कुत्ते ने चूल्हे पे रखा हुआ बर्तन देख लिया और उसमे मुहँ मार लिया | बर्तन नीचे गिर गया | उसमें रखे कुछ चने चूल्हे में गिरे और बाकी इधर-उधर फ़ैल गए | कुत्ते ने एक-एक करके सारे चने खा लिए और बहार चला गया | इधर हमीद गंदे पानी के किनारे बैठकर उसमें छोटे-छोटे पत्थर डालता रहा | रसूल और नूरजहाँ ने बहुत सा कीचड़ जमा कर लिया, उसमें सुखी मिट्टी डाली और कीचड़ को रौंदकर उसके बैल बनने लगे | अचानक जोर से आवाज आई-हमीद --|” हमीद ने आवाज पहचान ली और अपने हाथ के सारे पत्थर एक साथ पानी में डाल दिए | नूरजहाँ के हाथों का कीचड़ भी फेंक दिया और बोला –“रसूल कीचड़ फेंक, चल जल्दी आबा आए हैं |” नूरजहाँ का हाथ पकड़कर दौड़ते हुए घर आ गया | हमीद के पास आते ही रहमान ने उसके गाल पर जोर से थप्पड़ मार दिया और चिल्लाया –“ सूअर के बच्चे, दरवाजा खुला छोडकर वहाँ गंदगी में मुहँ मार रहा है ! सारे चने कुत्ते ने खा लिए |” नहीं अब्बा ---अब नहीं जाऊंगा आब्बा |” कहते हुए हमीद अपने हाथों से गाल पकड़कर बहार भागने लगा | रहमान उसकी ओर झपट पड़ा | “ रुक जा हरामजादे, तेरे पैर ही तोड़ देता हूँ |” तब तक हमीद बहुत दूर भाग गया था | रसूल और नूरजहाँ यह सब देखकर थरथर कांप रहे थे | उन्हें देखकर रहमान बोला-तुम क्या देख रहे हो | जाओ बैठो अंदर |” बच्चे चुपचाप अंदर चले गए | रहमान फिर खंडहर की तरफ चाल गया
          दादाराव धामनगांव का बड़ा जमींदार था | गांव में उसकी बड़ी धाक थी | गांव का कोई भी आदमी उसके सामने सर उठाकर चलने की हिम्मत नहीं करता था | सभी लोग उसे केवल ताना ही शेष था | उसीपर दादाराव आराम से बैठकर सभी मजदूरों को हिदायतें दे रहा था |  
इतने में सलमा आ गई | उसने दादाराव को जैसे ही देखा उसके पैर ठिठक गए | वह सर झुकाकर दादाराव की तरफ धीरे-धीरे आ गई | दादाराव ने उसे देखकर कहा-क्यूँ गे सलमा ! खाना खाने गई थी या सोने गई थी ?” सलमा अपने बचामें कहने लगी-तात्या जी ! बच्ची मेरे पीछे पड़ी थी सो---|” बीच में ही दादाराव गरज पड़े-तेरे पीछे बच्ची पड़े या कोई और | मुझे अपने काम से मतलब है समझी ? तू पूरे दो घंटे के बाद आई है | ये लोग पूरे एक घंटे से काम कर रहे हैं | जा ! तेरी एक घंटे की मजदूरी कट गई |” सलमा ने चुपचाप टोकरी उठा ली और जल्दी-जल्दी गोबर ढोने लगी
श्याम साढ़े छह बजे काम खत्म हुआ | सभी मजदुर घर की ओर निकल पड़े | दादाराव अभी तक रुका हुआ था | सलमा बड़ी लज्जा के साथ दादाराव के पास गई | -“
तात्याजी ! एक घंटा का के बचे हुए पैसे दीजिए |”
जैसे वक्त पर पैसे मांगती है,वैसे ही वक्त पर काम पर भी आया कर |”
जी तात्याजी !
आज मेरे पास कुछ नहीं |”
ऐसा मत करो तात्याजी, घर में बच्चे भूखे हैं |”
तो मैं क्या करूँ ?”
पर---
देख मेरा दिमाग मत चाट, पैसा कल ले जाना वरना कम पे मत आना |”
सलमा हताश होकर निकल पड़ी | पगडण्डी पर चलते हुए वह समझ नहीं पा रही थी उसे क्या करना चाहिए | पगडण्डी पार करके वह बैलगाड़ी के रास्ते पर आ गई | चलते-चलते अचानक उसके शरीर में सरसरी दौड़ गई | सर भारी होने लगा | गला सूखने लगा | आखों के सामने अँधेरा छाने लगा | उसे लग रहा था कि परों टेल की जमीन खिसक रही है | रास्ते के किनारे एक बड़े से पत्थर का सहारा लेकर सलमा झट से नीचे बैठ गई | पत्थर पर सर रखकर आँखे बंद करके थोड़ी देर पड़ी रही | कुछ समय बाद जैसे ही आँखे खुली, उसने देखा कि यह तो म्हसोबा का मंदिर है | मंदिर क्या था, बड़े-बड़े दो- चार पत्थर पड़े हुए थे | उसे सिंदूर लगा हुआ था | धामनगांव का यह देवता बड़ा प्रसिद्ध था | गांव में जब भी किसी के घर शादी होती, सबसे पहले यहाँ म्हसोबा के सामने बकरी काट दी जाती | सभी लोग यहाँ बैठकर खाना खाते और चले जाते | वहीँ एक पत्थर पर नारियल के दो-चार टुकड़े और प्रसाद चढ़ाया हुआ था | भूखे व्याकुल सलमा ने वह सब उठा लिए | प्रसाद अपने मुहँ में दल दिया | जैसे ही बच्चों कि याद आई, उसके आँखे भर आई | हाथ जोड़कर कहने लगी-या अल्लाह ! मुझे किस कुकर्म की सजा दे रहा है |” फिर उठकर चलने लगी |
घर में तीनों बच्चे बेचैन थे | रहमान घर आ गया था | बच्चों से कुछ बोले बगैर ही वह आँगन में पड़ा रहा | अँधेरा छा रहा था | आम्मी इतनी देर क्यों नहीं आई, इस चिंता में तीनों बच्चे रास्ते की ओर देख रहे थे | हमीद रास्ते से आते हुए हर एक से पूछ रहा था- मेरे आम्मी दिखाई दी ?” पर कोई भी बता नहीं सक | लगभग आठ बजे सलमा घर पहुँच गई | उसकी आहट सुनते ही रहमान झट से उठ गया | बगैर कुछ बोले ही उसने सलमा की छाती पर जोर से लाथ मार | सलमा धडाम से नीचे गिर गई | रहमान ने एक पैर उसकी पीठ पर रख दिया | एक हाथ से बाल खिंच लिए और चिल्लाया- हरामजादी ---इतनी देर कहाँ थी ? बोल-बोल कहाँ मुहँ कला कर रही थी ? और वह जोर-जोर से घूँसे मारने लगा | बच्चे रोते हुए इधर-उधर भागने लगे | हमीद ने जोर से आवाज दी- आम्मीss आम्मी मर गई ----आब्बू आम्मी को मत रो ---मत मारो आब्बू ---आम्म--और वह पकाभाऊ के घर की ओर भागने लगा | “ चाचा ---- आम्मी को बचाओ ----आम्मी को बचाओ आम्मीss पकाभाऊ तथा शांति ने हमीद की आवाज सुन ली और जल्दी से हमीद के घर पहुँच गए | सभी लोग जमा होकर केवल तमाशा देख रहे थे | कोई बीच में नहीं पड़ा | पकभाऊ ने रहमान को पीछे से दबोच लिया | उसे खींचते हुए कहने लगा-छोड़ रहमान ! छोड़ उसे ---छोड़ |” रहमान फिर भी मारता ही जा रहा था | पकाभाऊ ने जोर से उसे झटका दिया तो रहमान पीछे गिर पड़ा | उसे बड़ा गुस्सा आ गया | वह चिल्लाया- ये पक्याss तू बीच में मत आ | हर बार इसको बचने आता है | साले, ये तेरी रखेल लगती है क्या ?” पकाभाऊ आपे से बाहर हो गया | उसने रहमान के मुहँ पर जोर से थप्पड़ दे मारा | रहमान को दिनमें तारे नजर आने लगे | वह झट से नीचे बैठ गया | पकभाऊ गुस्से से लाल होकर कहने लगा-हरामखोर, फिर ऐसी बात की तो उठा के कुएँ में फ़ेंक दूँगा | वह बेचारी मुझे अपनी बहन जैसी है | हर साल वह मुझे राखी बांधती है और तू इतनी गन्दी बात करता है |” पकाभाऊ गुस्से से थरथर कांपने लगा | इधर तीनों बच्चे सलाम के पास बैठकर शोर करने लगे | नूरजहाँ-आम्मीआम्मीआम्मी मुजे भूक लगी है |” कहते हुए अपनी आम्मी को जगाने की कोशिश कर रही थी | परन्तु सलमा कभी न् टूटने वाली गहरी नींद ले रही थी
समाप्त!!!!!                      






      

Saturday, October 2, 2010

आरजू



फूलों भरी राह,
सफ़र
जिंदगी का हो तुम्हारा,
बस ! यही तमन्ना खुदा,
खुशियों से दामन,
भरे तुम्हारा |
ठंडी हवा
हरियाली में जहाँ,
कोयल का गीत,
झरनों का संगीत हो,
नदियों का किनारा,
जहाँ
बसेरा तुम्हारा हो |
हँसना- हँसाना,
दर्द कैसा
सुंदर सारा जहाँ,
अहसास तुम्हारा हो |
आँखों से नेह बरसे,
लबों पे नगमा हो,
आरजू ये मेरी,
तुम्हें
खुशियाँ मुबारक हो |