Wednesday, November 21, 2012
Wednesday, September 26, 2012
सत्य की अवधारणा
सत्य एक ऐसी अवधारणा है, जो मनुष्य की सोच व समझ पर आधारित है | मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है | उसके पास सोच रूपी अनंत जमीन है जो उपजाऊ है | उस जमीन के अंदर अनगिनत चीजें उग आती हैं|
“ सत्य मूर्त भी है और अमूर्त भी |” मनुष्य की सोच व विशवास
यह तय करता है कि उसके लिए सत्य क्या है | वास्तव में सत्य को निश्चित परिभाषा में
जकड पाना असंभव है | धर्म के आधार पर सत्य को अलग दृष्टि से देखा व समझा जाता है, वहीँ
अगर विज्ञान की दृष्टि से देखें तो सत्य का अलग रूप दिखाई देता है |
मेरा यह मानना है कि सत्य को विज्ञान की दृष्टी से देखना ही
उचित है | इसीलिए कि विज्ञान को छोडकर बाकी सब कल्पना भर है |कल्पना जब साकार हो
जाती है तब सही अर्थ में ‘सत्य’ कहलाती है | कोई बात जब तक कल्पना की उड़ान भरती है
तब तक वह महज कल्पना ही होती है | परंतु यदि वह मूर्त रूप धारण करें तो उसे सत्य
के रूप में स्वीकारना होगा |
‘ जिव्हा के द्वारा जिसके स्वाद का पता चलता है, आँखों से
जो दिखाई देता है, जो कानों से सुनाई देता है, जिसे नाक से सूंघा जा सकता है , जो
स्पर्श से महसूस होता है वही सत्य है |”
जो भिन्न भाषाओँ द्वारा केवल व्यक्त होता है उसकी सत्यता पर
आशंका उत्पन्न होती है जब तक कि वह प्रकट न् हो | सत्य को सुंदर मान जाता है | अगर
वह सुंदर है तो हम जरुर किसी न् किसी रूप में उसके होने का अनुभव करते हैं | यही
कारण है कि हम उसे सुंदर कह पाते हैं | कुछ लोग बिना अनुभव के कल्पना को ही सत्य
मान बैठते हैं | परंतु कल्पना एवं सपने में अधिक अंतर नहीं है | मनुष्य अपने जीवन
में कई सपने देखता है | परंतु साकार कुछ लोग ही कर पाते हैं जो निरंतर अपने कर्म
पर भरोसा करते हैं | बिना कर्म किए जो केवल अपने भाग्य के भरोसे रहते हैं, या केवल
सपने देखते हैं, उनके सभी सपने केवल सपने बनकर रह जाते हैं | इसीलिए सपनों को अपने
कर्म के आधार पर साकार करना ही सत्य कहलाता है | जिस प्रकार बिना भाषा के सत्य को
स्पष्ट करना असंभव है , ठीक उसी तरह ठोस प्रमाण के बिना तथाकथित सत्य को मान लेना असंभव
है | मेरे मन में सदैव एक प्रश्न उठता है कि हम क्यों अपनी ही नजर में किसी चीज को
पूर्ण सत्य मानने की गलती करते हैं, उसे औरों की भी नजर से क्यों नहीं देखा जाता ?
शायद इसीलिए कि उसके पीछे हमारा अपना कोई स्वार्थ छिपा हो | हम लगातार असत्य को
सत्य के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं, परंतु सत्य किसी न् किसी रूप में
प्रकट हो ही जाता है | क्योंकि असत्य पर हमेशा सत्य की विजय होती है |
Saturday, May 19, 2012
समय का कोई समय नहीं
सूर्य के उदय तथा अस्त के बीच का का अंतराल
समय है | समय अजरामर है | वह हर दिन नया जन्म ग्रहण करता है | उदय व अस्त के बीच जो
कुछ भी घटित होता है उसे मनुष्य अपनी सुविधा के अनुसार समय के विभिन्न टुकड़ों में
विभाजित करता है | अनंत घटनाओं का चक्र लगातार चलता रहता है | संसार का यह वह चक्र
है जिसका स्वभाव परिवर्तन है | वह निरंतर नया रूप धारण करता है | पशु हो या
मनुष्य, लगातार इस चक्र में अपने आप को ढालने का प्रयास करते रहता है |
समय प्राकतिक है | वह मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं है |
इसीलिए मनुष्य न् उसे रोक सकता है और न् ही उसे परिवर्तित कर सकता है | संसार के
हर जीव के लिए एक मर्यादित समय होता है | उसी समय में उसे अपने किसी भी कार्य को
संपन्न करने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है | समय कभी भी न् अच्छा होता है और न्
ही बुरा बल्कि हम इन्सान उसे अच्छा या बुरा करार देते हैं | कोई इन्सान अगर अच्छा
कर्म करता है तो उसके लिए अच्छा समय माना जाता है और कोई बुरा कर्म करता है तो उसका
बुरा समय माना जाता है | सच तो यह है कि इसमें दोष समय का नहीं बल्कि निर्धारित
समय का उपयोग करने वालों का है | हमें जरुरी है कि हम निश्चित समय में निश्चित
कार्य करें | विंस्टन चर्चिल इस सन्दर्भ में कहते हैं –“ It
is mistake to look too far ahead. Only one link of the chain of destiny can be
handled at a time.”
सूर्य के उदय व अस्त के बीच जो समय है उसमें भी हम अपनी
सुविधा के लिए कह सकते हैं कि भिन्न-भिन्न समय हैं | अगर कोई प्राकृतिक विपदा आ
जाती है तो उसमें किसी भी जीव का कोई दोष नहीं बल्कि प्रकृति का है | आपदा के घटित
होने पर या घटित होने के अहसास पर हम कहते हैं कि आजकल समय ठीक नहीं चल रहा है |
परन्तु प्रकृति का स्वभाव परिवर्तन है | वह कभी भी और किसी भी रूप में परिवर्तित
हो सकती है | अगर हम समय को अपने जीवन के साथ मर्यादित करके देखते हैं तो हमें
ध्यान रखना पड़ेगा कि प्रकृति में मनुष्य की निर्मिति अदभुत, चमत्कारी एवं अनमोल है
| इसीलिए हमें समय के अनुसार चलना होगा | शेक्सपियर ने सही कहा है –“ पृथ्वी एक
रगमंच है और हम सब उस मंच के कलाकार हैं |” अपने प्राप्त समय में हम कैसा अभिनय
करते हैं यह हम पर ही निर्भर है | वास्तव में हमारा सम्पूर्ण जीवन एक सुंदर अभिनय
है |
मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि हमें समय के साथ चलकर सदैव खुश
व सतर्क रहना चाहिए क्योंकि किसी भी समय का कोई निचित समय नहीं होता है |
Wednesday, April 4, 2012
सुबह सवेरे (बाल कविता)
सुबह सवेरे, प्यारे-प्यारे,
फूल खिले हैं आँगन में,
मोर नाचे, कोयल गाए,
खेल रहे हैं बागन में |
उठो-उठो अब आँखे खोलो,
बाहर थोड़ी दौड लगाओ,
सुनहरी धूप, ठंडी पवन में,
झूमों गाओ, खुशी मनाओ |
मैना बोले चू-चुड-चूsss
मुर्गा बोले कु-कुड-कूsss
आओ दोस्तों, आ भी जाओ,
साथ मिलकर नाचो, गाओ |
Monday, March 19, 2012
पानी ही जीवन है ( विश्व पानी दिवस के लिए समर्पित )
खाना हो या उपवास ,प्यासों की प्यास
इसी में है,
जीवन का उल्हास |
पानी शक्ति है
वह बहता है, बहाता है,
नहलाता भी है |
पानी जीवन देता है ,जीवन लेता है
पानी सबकी चाहत है ,राहत है,
क़यामत भी है |
पानी अमृत है अच्छाई का
जहर है बुराई का ,
यह दवा है, दुवा भी है|
पानी में विश्व है , विश्व में पानी है
सारे जहाँ में बस, पानी ही पानी है |
पानी हमारा आज है ,हमारा कल भी है,
मंजिल हमारी जो भी है
पानी हमारा हमसफर भी है |
सुबह का पानी, श्याम का पानी
रात हो या उजाला,
प्रकृति की गोद में समाया है पानी |
देवी हो या देविका
प्रेमी हो या प्रेमिका
सबके दिलों पर राज है पानी का |
जीने के लिए पानी ,मरने के लिए पानी
इसका न् कोई सानी , ईश्वर की वाणी
मरणोपरांत भी पिलाया जाता है पानी |
इसीलिए कहता हूँ,
पानी में जीवन है,
जीवन ही पानी है |
Tuesday, February 14, 2012
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